Saturday, November 28, 2009


मै जब भी तनहा होता हूँ, खुद से बस ये कहता हूँ,
क्यूँ खामोश-खामोश सी ये हवा है, क्यूँ वीरान-वीरान सी हर जगह है,
क्यूँ फैला अँधेरा राहों में, क्यूँ सूरज छिपा पनाहों में,
क्यूँ कोहरा भरा है आँखों में, कुछ आता नहीं निगाहों में,
इस सोच में डूबा रहता हूँ, मै जब भी तनहा होता हूँ !

"Sandeep Zorba"

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