Thursday, November 10, 2011


कभी चीखती है ख़ामोशी कानों में,
और रुआंसी, सी हो जाती है चेहरे की हंसी,
वो एक आवाज़ बजती है, कहीं दूर अब भी,
मै पागल नहीं, जो दौड़ता हूँ अनजान साए के पीछे,
घडी अब भी रुकी है उसी वक़्त पर,
दरवाजा भी एक आस लिए खुला है,
उड़ती है आँगन की धूल बेचैन होकर,
वो कदम जो गए, फिर लौटकर आए नहीं...

"Sandeep Zorba"

उन निगाहों के इस किनारे मै रहता हूँ,
उस किनारे उसकी है बसर,
बीच में जाने कौन ठहरा है,
मै जब भी, उसकी आँखों के शीशे में,
अपना चेहरा, देखने की कोशिश करता हूँ,
तो एक अनजान अक्स नज़र आता है,
कोई और शख्स नज़र आता है,
बीच में जाने कौन ठहरा है....

"Sandeep Zorba"

जेब अगर बाहर से फटी हो,
तो समझना पैसा था,
मगर काट ली है किसी जेब कतरे ने,
पैसों की तलाश में,
जेब अगर अंदर से फटी हो,
तो समझना, अपना ही कोई हाथ था उसे फाड़ने में,
पैसों की तलाश में...

"Sandeep Zorba"

Wednesday, November 9, 2011


ज़रा देर से आज सुबह आई है,
रात शायद जाना भूल गयी होगी,
मै इंतज़ार में था कुछ परिंदों के,
बहुत देर तक, खडकी के पास बैठा रहा,
सूरज के चेहरे पर भी, कुछ थकान सी थी,
लगता है, वो भी कहानियाँ पढता है रातभर,
जल्दी में था, वो कहीं पहुचने की शायद,
मेरे घर पर, रौशनी डालना भी भूल गया,
पौधे बहुत उदास है, मेरी बगिया के,
ओस में आज, नहाये नहीं होंगे,
एक चुभन सी महसूस हुई, फिर आज होठों पर,
मेरी चाय के प्याले में, दरार निकल आई है,
ज़रा देर से आज सुबह आई है...

"Sandeep Zorba"