Wednesday, November 25, 2009
ख्व़ाब कितने सस्ते होते है ना?
ख्व़ाब कितने अच्छे होते है ना?
जो ख्व़ाब, मै अपने मखमली बिस्तर पर,
गर्म रज़ाई की आग़ोश में छुपकर देखता हूँ ,
वही ख्व़ाब वो बूढा आदमी बटोर लेता है ,
जिसके बदन पर कपडे तो है, मग़र काफी नहीं,
जो लेटा है अपने हाथ पैर समेटे,
शहर की ठंडी शोरगुल सी उस सड़क पर,
इस उम्मीद कि और कुछ नहीं तो शायद,
नींद तो उसके नसीब में होगी,
जागता, मै भी हूँ देर तक,
जागता, वो भी है देर तक,
फर्क बस इतना है कि,
मै फेसबुक के लिए नींद छोड़ देता हूँ,
और उसे भूख सोने नहीं देती,
ख्व़ाब उसके भी है और मेरे भी,
फर्क बस इतना ही है, कि
मेरे ख्व़ाब, नींद के बाद शुरू होते है,
और उसकी नींद, ख्व़ाब के बाद आती है,
ख्व़ाब, मेरे लिए एक झूठी दुनिया है,
और ख्व़ाब, उसके लिए एक पूरी दुनिया है,
ख्व़ाब कितने सस्ते होते है ना?
ख्व़ाब कितने अच्छे होते है ना?
"Sandeep Zorba"
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