Monday, June 25, 2012


नींद ही तो टूटी है,
ख्वाब तो मगर, अब भी बाकी है...

बिछड़ के उससे, फिर मिलना हुआ न दोबारा,
वो भीड़ में नहीं, तन्हाई में खोया था...

प्यास थी, सो दर्द पी गया,
ज़ख्म इसके बाद फिर, अकेला रह गया..

जिंदगी धागों सी उलझी हुई है,
या उलझे है धागे जिंदगी बनकर...???



सूरज को निकलने में ज़रा देर क्या हुई
जुगनू निकल पड़े, उजाला करने...